मानवीय जीवन का रहस्य

मानवीय जीवन का रहस्य

क्या कभी आपने आश्चर्य किया कि आप इस संसार में क्यों रह रहे हैं और आपके जीवन का उद्देश्य क्या है? छः चाबीयाँ हैं जो इस रहस्य को खोलती हैं।

1- परमेश्वर की योजना

परमेश्वर की इच्छा है कि मनुष्य के द्वारा स्वयं को अभिव्यक्त करे, (रोमियों 8:29)। इस उद्देश्य के लिए उसने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया (उत्पत्ति 1:26)। जिस प्रकार एक दस्ताना हाथ के स्वरूप में बनाया जाता है कि हाथ उस में समा सके, उसी प्रकार मनुष्य भी परमेश्वर के स्वरूप में बनाया गया कि परमेश्वर को अपने में समाविष्ट करे। परमेश्वर को अपने अंश के रूप में ग्रहण करने के द्वारा, मनुष्य परमेश्वर को अभिव्यक्त कर सकता है (2 कुरिन्थियों 4:7)।

2- मनुष्य

अपनी योजना पूरी करने के लिए, परमेश्वर ने मनुष्य को एक बर्तन के रूप में बनाया (रोमियों 9:21-24)। इस बर्तन के तीन भाग हैं: देह, प्राण, और आत्मा (1 थिस्सलु-5:23)। देह भौतिक परिमण्डल से सम्पर्क करती है और अपनी शारीरिक वस्तुएँ प्राप्त करती है। प्राण अर्थात् मानसिक मनोवैज्ञानिक परिमण्डल से सम्पर्क करती है और मानसिक वस्तुएँ प्राप्त करती है। और मानवीय आत्मा, मनुष्य के अन्तरतम भाग को बनाया गया कि परमेश्वर से सम्पर्क करे और स्वयं परमेश्वर को प्राप्त करे (यूहन्ना 4:24)। मनुष्य को केवल इसलिए नहीं बनाया गया कि अपने पेट में भोजन समाहित करे, अथवा अपने मन में ज्ञान समाहित करे, पर इसलिए कि परमेश्वर को अपनी आत्मा में समाहित करे (इफिसियों 5:18)।

3- मनुष्य का पतन

परन्तु इससे पहिले कि मनुष्य अपनी आत्मा में जीवन के रूप में परमेश्वर को ग्रहण करता, पाप ने उसमें प्रवेश कर लिया (रोमियों 5ः12)। पाप ने उसकी आत्मा को मृतक बना दिया (इफिसियों 2:1), उसके मन में उसे परमेश्वर का शत्रु बना दिया (कुलुस्सियों 1ः21), और उसकी देह को पापपूर्ण देह में बदल दिया (उत्पत्ति 6:3; रोमियों 6:12)। इस प्रकार, पाप ने मनुष्य को परमेश्वर से दूर करके उसके तीनों भागों को बिगाड़ दिया। इस दशा में, मनुष्य परमेश्वर को प्राप्त नहीं कर सकता था ।

4- परमेश्वर के प्रावधान के लिए मसीह का छुटकारा

कुछ भी हो, मनुष्य का पतन परमेश्वर को उसकी मूल योजना पूरी करने से रोक नहीं पाया। अपनी योजना को पूरी करने के लिए, सबसे पहिले परमेश्वर मनुष्य बना जो यीशु मसीह कहलाया (यूहन्ना 1:1, 14)। तब मनुष्य को छुटकारा देने के लिए (इफिसियों 1:17) मसीह क्रूस पर मरा कि उसके पापों को उठा ले (यूहन्ना 1:29) और उसे परमेश्वर तक वापस ला रहा है (इफिसियों 2:13)। अन्त में, पुनरुत्थान में वह जीवन-दायक आत्मा बना (1 कुरिन्थियों 15:45ब) जिससे कि वह मनुष्य की आत्मा में अपना अखोजनीय मूल्यवान जीवन डाल सके (यूहन्ना 20:22; 3:6)।

5- मनुष्य का नया जन्म

चूँकि मसीह जीवन-दायक आत्मा बन गया है, इसलिए अब मनुष्य अपनी आत्मा में परमेश्वर का जीवन प्राप्त कर सकता हैं। बाइबल इसे नये सिरे से जन्म लेना कहती है (1 पतरस 1:3; यूहन्ना 3:3)। इस जीवन को पाने के लिए, मनुष्य को परमेश्वर के सामने मन फिराने और प्रभु यीशु मसीह में विश्वास करने की आवश्यकता है (प्रेरितों 20:21; 16:31)।

नया जन्म पाने के लिए प्रभु के पास सादगी से खुले एवं सच्चे हृदय से आएँ और उससे कहें:

प्रभु यीशु, मैं पापी हूँ। मुझे तेरी ज़रूरत है। मेरे लिए मरने हेतु तेरा धन्यवाद करता हूँ। प्रभु यीशु, मुझे क्षमा कर। मुझे मेरे सब पापों से शुद्ध कर। मैं विश्वास करता हूँ कि तू मृतकों में से जी उठा है। ठीक अभी मैं तुझको अपना उद्धारकर्ता और जीवन ग्रहण करता हूँ। मुझ में आ! मुझे अपने जीवन से भर दे! प्रभु यीशु, मैं तेरे उद्देश्य के लिए अपने आपको तुझे देता हूँ।

6- परमेश्वर का सम्पूर्ण उद्धार

नया जन्म पाने के बाद, एक विश्वासी को बपतिस्मा लेने की आवश्यकता होती है (मरकुस 16:16)। तब परमेश्वर विश्वासी की आत्मा से उसके प्राण के अन्दर धीरे-धीरे स्वयं को फैलाने की आजीवन प्रक्रिया आरंभ करता है (इफिसियों 3:17)। यह प्रक्रिया रूपान्तरण कहलाती है (रोमियों 12:2), जो मनुष्य के सहयोग की माँग करती है (फिलिप्पियों 2:12)। विश्वासी प्रभु को अनुमति देकर सहयोग करता है कि उसके प्राण के अन्दर वह तब तक फैलता जाए जब तक कि उसकी सब इच्छाएँ, विचार, और निर्णय मसीह की समानता में एक न बन जाएँ। अन्त में, मसीह के दुबारा आगमन पर, परमेश्वर विश्वासी की देह को अपने जीवन के साथ पूरी तरह से संतृप्त कर देगा। यह महिमामय होना कहलाता है (फिलिप्पियों 3:21)। इस प्रकार, प्रत्येक अंग में रिक्तता और क्षतिग्रस्तता के बदले, यह मनुष्य परमेश्वर के जीवन से भर जाता और संतृप्त हो जाता है। यह परमेश्वर का सम्पूर्ण उद्धार है! ऐसा मनुष्य अब परमेश्वर की योजना पूरी करते हुए परमेश्वर को अभिव्यक्त करता है!

इस जीवन को पाने के बाद एक विश्वासी को मसीही सभाओं में भाग लेना चाहिए जिससे कि वह परमेश्वर के जीवन द्वारा पोषित हो और पूर्ति पाए कि वह इस जीवन में बढ़ सके और परिपक्व होता जाए। मसीह की देह अर्थात् कलीसिया में दूसरे विश्वासियों के साथ सहभागिता करने पर एक विश्वासी मसीह की उपस्थिति की समृद्धि का आनन्द उठा सकता है।

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